(सुभाष भारती): भारत में बढ़ रहे प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए सरकार ने हाल ही में निर्णय लिया है कि एनसीआर के अंतर्गत आने वाली सभी मिलें अब केवल आठ घंटे ही चल पाएँगी। सरकार के इस निर्णय का व्यापारी को किस हद तक आर्थिक नुक्सान हो सकता है, यह बताने की कोशिश की जा रही है।
सरकारी फरमान का असर
सरकार के इस फरमान के बाद दिल्ली-एनसीआर में पिछले दिनों से लगभग 550 राइस मिलें बंद है इनमें लगभग 400 हरियाणा में हैं, लगभग 2 लाख के आसपास श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं। मिल मालिकों का कहना है कि सरकार ने जो प्रतिबंध लगाये हैं इस तरह के प्रतिबंध चावल उद्योग के लिए असहनीय हैं और इस तरह का फरमान चावल के उद्योग को बर्बाद करने वाला साबित हो सकता है।
क्यूँ हो रहा नुकसान
ज्ञातव्य है कि बासमती चावल तैयार करने की प्रकिया 24 घण्टों की होती है और आठ घंटे की शिफ्ट में स्टीम चावल तैयार करना सम्भव नहीं है इसीलिए चावल मिलें बंद हो गई हैं। राइस इंडस्ट्री के जानकारों का मानना है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों को चावल उद्योग की जटिलताओं की समझ नहीं है इसलिए इस तरह का आदेश जारी किया गया है। हरियाणा राइस एक्सपोर्ट एसोसिएशन ने सरकार से आग्रह किया है कि सरकार अपना आदेश वापिस ले नहीं तो एसोसिएशन आंदोलन करने के लिए बाध्य हो जाएगी।
निर्यात पर कितना असर
भारत से सालाना लगभग 35000 करोड़ रुपये का चावल का निर्यात होता है और इसमे से लगभग 22000 करोड़ का निर्यात सिर्फ एनसीआर से होता है। राइस मिलें बंद होने के कारण मिल मालिकों को लगभग 80 करोड़ का डेली नुकसान उठाना पड़ रहा है। अगर ऐसे ही चलता रहा तो बासमती चावल निर्यात के ऑर्डर समय पर पूरे नहीं हो पाएंगे और भविष्य में इसका और खामियाजा व्यापारियों को भुगतना पड़ सकता है।
धान की कीमतों पर असर
राइस मिलों के बंद होने से राइस मिलर्स धान की खरीद में रुचि नहीं दिखा रहे हैं जिस कारण धान की डिमांड कम हो गई है। फलस्वरूप धान की कीमतें पिछले एक हफ्ते में अपने टोप से लगभग 2 सौ से 3 सौ रूपये प्रति क्विंटल के हिसाब से भाव गिरे हैं। धान 1121 का समान्य भाव 3700 से 3900 के बीच रह गया है। बासमती 30 भी अपने टोप से लगभग 300 से 400 रूपये डाउन आ चुका है। हालांकि इन खबरों के चलते सब जगह धान के भाव में गिरावट देखी जा रही है लेकिन इसमें ज्यादा बड़ी गिरावट हरियाणा की मंडियों में देखने को मिल रही है जबकि पंजाब में उतना असर दिखाई नहीं दे रहा। ऐसा तब हुआ जब चावल की कीमतें कम नहीं हुई हैं और निर्यात के लिए भरपूर ऑर्डर उपलब्ध हैं।
अब आगे क्या है उम्मीद
हालांकि हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी लगभग 44-45 लाख टन बासमती चावल का निर्यात होने का लक्ष्य हासिल होने की उम्मीद है लेकिन फसल पिछले वर्षों की तुलना में इस वर्ष कमजोर है। सीजन खत्म होने को है और आवकें घटनी शुरू हो गई हैं। सब तथ्यों को देखा जाए तो लंबे समय में मंदी की संभावना कम है लेकिन फिल्हाल किसी बड़ी तेजी के लिये इंतजार करना पड़ सकता है।
व्यापारी व किसान असमंजस में हैं धान रोके या बेचें
हालातों के मद्देनजर फिलहाल मार्केट में मंदी जरूर लग रही है लेकिन चावल की सप्लाई कम है। कोरोना के चलते स्टॉकिस्टों के पास भी पुराना स्टॉक नहीं है। उत्पादन भी कम बताया जा रहा है, ऐसे में लंबे समय को देखें तो मंदी ज्यादा दिन नहीं टिक पाएगी । जल्द ही अच्छे भाव मिलने शुरू हो सकते हैं।