नई दिल्ली, (सुभाष भारती): बासमती चावल के एकाधिकार के लिए जीआई टैग को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच रस्साकशी लगातार बढ़ती जा रही है और इस रस्साकशी बढऩे के पीछे वजह है यूरोपीय संघ की एक अदालत का फैसला। दरअसल, यूरोपीय संघ की एक अदालत के हाल ही में आए एक फैसले ने पाकिस्तान को गुमराह किया है कि बासमती चावल पर उसके भौगोलिक संकेत (जीआई) अधिकारों को बरकरार रखा गया है।
बासमती चावल भारत और पाकिस्तान, दोनों ही देशों में पैदा होता है और दोनों ही देश इस पर अपना पेटेंट हासिल करने के लिए जीआई टैग लेने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
भारत ने पिछले साल बासमती चावल के लिए संरक्षित भौगोलिक संकेत (पीजीआई) स्थिति के लिए यूरोपीय संघ में आवेदन किया था। पाकिस्तान ने भारत के इस आवेदन का विरोध किया था क्योंकि अगर जीआई टैग भारत हासिल कर लेता है तो इससे पाकिस्तान के बासमती चावल के निर्यात पर असर पड़ेगा और इससे उसके किसानों की आमदनी प्रभावित हो सकती है भारत और पाकिस्तान ही दो ऐसे देश हैं जो दुनिया को बासमती चावल का निर्यात करते हैं।
यूरोपियन यूनियन के ऑफिशियल जर्नल में बीते साल सितंबर में छपे एक लेख के मुताबिक, ऐतिहासिक, परंपरागत, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से बासमती चावल भारतीय उपमहाद्वीप के साथ जुड़ा हुआ है और इससे इसकी अंतरराष्ट्रीय छवि भी है, इसलिए भारत को बासमती चावल के लिए जी आई टैग दिया जाना चाहिए, पाकिस्तान ने इसका पड़ा विरोध किया था। दरअसल, भारत में बासमती चावल की खेती सदियों से होती आ रही है. जब भारत-पाकिस्तान एक ही थे।
बासमती चावल
बासमती भारत की लम्बे चावल की एक अच्छी किस्म है, इसका वैज्ञानिक नाम है ओराय्जा सैटिवा। यह अपने खास स्वाद और मोहक खुशबू के लिए प्रसिद्ध है. बास यानी सुगंध और मती यानी रानी। बासमती का अर्थ है सुगंध की रानी। भारत इस किस्म का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसके बाद पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश में भी बासमती चावल की खेती होती है।
पुराना है विवाद
सितंबर 1917 में, राइसटैक नामक एक टैक्सास की कम्पनी ने बासमती लाइन्स और दानों का पेटेंट हासिल किया था। इस पेटेंट से बासमती और उसके समान चावलों की शोधन प्रक्रिया आदि पर उनका एकाधिकार हो गया था, कुछ देशों ने इसका विरोध करना शुरू किया, हालांकि बढ़ते विरोध के चलते राइसटैक कंपनी एकाधिकार से हाथ खींच लिए थे।
क्या है जीआई टैग
खाने-पीने की चीजों को संरक्षण देने के लिए जीआई सिस्टम शुरू हुआ था, इस सिस्टम का मकसद किसी जगह विशेष पर तैयार होने वाली खाने-पीने की उम्दा वस्तुओं या फिर जो उन्हें तैयार करते हैं उन्हें अपनी वस्तु को लेकर विशेष अधिकार दिए जाएं, ताकि अन्य लोग उसी तरह के सामान तैयार करके लोगों को बेवकूफ ना बना पाएं। जीआई टैग का मकसद वस्तुओं की क्वाविटी बनाए रखना और फर्जीवाड़े को रोकना है। जीआई यानी जियोग्राफिक़ इंडिकेशन टैग एक ऐसा टैग है जो बताता है कि एक विशेष चीज किसी जगह विशेष में पैदा होती है या बनाई जाती है।
जीआई टैग हासिल करने के लिए आपको वर्ल्ड ट्रेड ऑग्रेनाइजेशन की संस्था ‘अग्रीमेंट ऑन ट्रेड-रिलेटेड आस्पेक्ट्स ऑफ़ इंट्लेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स’ के माध्यम से आवेदन करना होगा। इंटरनेशनल स्तर पर जीआई टैग लेने के लिए पहले अपने ही देश में इस टैग के लिए आवेदन करना पड़ता है।